बैल की कहानी: मेहनत, मूर्खता और समझदारी की सीख
Web Stories यह कहानी नवनीत और उसके दादा जी की है, जहां दादा जी उसे बैल की मेहनत और मूर्खता की कथा सुनाते हैं। बैल मेहनती थे, लेकिन पुआल को चुनकर
Web Stories यह कहानी नवनीत और उसके दादा जी की है, जहां दादा जी उसे बैल की मेहनत और मूर्खता की कथा सुनाते हैं। बैल मेहनती थे, लेकिन पुआल को चुनकर
यह कहानी नवनीत और उसके दादा जी की है, जहां दादा जी उसे बैल की मेहनत और मूर्खता की कथा सुनाते हैं। बैल मेहनती थे, लेकिन पुआल को चुनकर अपनी मूर्खता साबित कर दी। कहानी सिखाती है कि मेहनत के साथ समझदारी भी जरूरी है, तभी सच्ची सफलता मिलती है।
बाप-बेटा दोनों धार्मिक प्रवृत्ति के थे। जब भी कहीं भजन-कीर्तन होता, दोनों साथ जाते। एक बार दोनों बाप-बेटा भजन-कीर्तन कर कहीं से घर लौट रहे थे। रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था।
हमारी इच्छाएं असीमित हैं किन्तु हमारे साधन सीमित हैं। हमारे पास कितना भी धन हो जाये, हमारी कुछ इच्छाएं सदैव पूरी होने से वचिंत रहेंगी। जब तक हम अपने वर्तमान से संतुष्ट होना नहीं सीखते हम दुखी रहेंगे।
बारिश थम चुकी थी। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। पानी से धुले पेड़ों पर एक नयी छटा दिख रही थी। मधुमक्खी एक खिले हुये फूल पर मडंरा रही थी। वह सारे उपवन में घूम-घूम कर अपने छत्ते पर ले जाने के लिये परागकण एकत्र कर रही थी।
बंटी! चलो खाना खालो! अन्दर रसोई से मां ने बंटी को आवाज लगाई। नहीं, मैं खाना नहीं खाऊंगा बंटी ने अपने कमरे से ही मुंह फुलाए उत्तर दिया। क्यों! क्यों नहीं खाओगे?
यह एकदम सच्ची और प्रेरक घटना है, हालांकि घटना थोड़ी पुरानी है, यानि अंग्रेजी राज्य के समय की जब हमारा देश गुलाम था। गोरे किसानों पर बहुत अत्याचार करते थे, उनसे लगान लेते थे और उन्हें अकारण अपमानित करते थे।