Motivational Story: एक पैसा नहीं रुपया लो
एक बार विद्यासागर जी बाजार से गुजर रहे थे। रास्ते में एक बालक उनके सामने हाथ फैलाकर एक पैसा मांगने लगा। विद्यासागर जी उस बालक से बोले "यदि मैं तुम्हें एक पैसे के स्थान पर एक रूपया दूं तो तुम क्या करोगे?"
एक बार विद्यासागर जी बाजार से गुजर रहे थे। रास्ते में एक बालक उनके सामने हाथ फैलाकर एक पैसा मांगने लगा। विद्यासागर जी उस बालक से बोले "यदि मैं तुम्हें एक पैसे के स्थान पर एक रूपया दूं तो तुम क्या करोगे?"
मोनू की ज़िद्दी आदत से घर के सभी लोग परेशान थे। जिद करना तो उसकी रोज की दिनचर्या बन गई थी। कभी खिलौने को तो कभी खाने-पीने की वस्तुओं की। आज स्कूल से लौटकर घर में घुसते ही मोनू ने पूछा।
थके कदमों से सुरेश अपनी क्लास में दाखिल हुआ। डर से उसका दिल बुरी तरह धड़क रहा था। आज भी वह पिकनिक जाने के लिए बीस रुपए नहीं जुटा सका था। उसने जैसा सोचा था वैसा ही हुआ। क्लास में उसके कदम रखते ही एक ठहाका गूंजा।
तेरह वर्षीय काली उछलता-कूदता पाठशाला की ओर बढ़ता जा रहा था। फुटपाथ के किनारे लगी रेलिंग की छड़ को गिनते-गिनते सहसा उसका पैर पटरी पर उभरे हुए एक पत्थर से टकराया और वह संभलता-संभलता भी धड़ाम से गिरा।
सर्दियों के दिन थे, आशू अपने घर की छत पर धूप में बैठकर पढ़ाई कर रहा था। उसके घर के ठीक बगल में रमा आंटी का घर था। रमा आंटी की बेटी मंजरी आशू के स्कूल में ही पढ़ती थी।
उसका नाम वीर बहादुर था दुबली-पतली काया और नाटे कद का स्वामी वीर बहादुर राधेपुर गांव में रहता था। वह दुनिया में अकेला था न मां बाप। पत्नी और बच्चे भी नहीं, कोई कहता कि उसने शादी नहीं की तो कोई पत्नी के चल बसने की बात कहता।
पानीपत की लड़ाई छिड़ी हुई थी। पानीपत के मैदान में दोनों ओर दूर-दूर तक सैनिक लोग तम्बुओं में पड़े हुए हर समय गोला बारूद और सैनिकों से भिड़ जाने को थे। ऐसी ही एक शाम को जब लड़ाई कुछ देर के लिए रुकी हुई थी।