कविता: यह कैसी दीवाली है!

“यह कैसी दीवाली है!” एक जागरूकता और पर्यावरण-संरक्षण पर आधारित हिंदी कविता है जो हमें त्योहारों के असली अर्थ की ओर लौटने की प्रेरणा देती है।

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यह कैसी दीवाली है!” एक जागरूकता और पर्यावरण-संरक्षण पर आधारित हिंदी कविता है जो हमें त्योहारों के असली अर्थ की ओर लौटने की प्रेरणा देती है। आज जब दिवाली (Diwali) शोर, प्रदूषण (Pollution) और पटाखों (Crackers) की होड़ में बदल गई है, यह कविता हमें सोचने पर मजबूर करती है — क्या सच में यही खुशियों का त्योहार है?

कविता का हर पद (stanza) उस हकीकत को बयां करता है जिसे हम नज़रअंदाज़ करते हैं। आसमान में फैला धुआं, कानों को चीरती आवाज़ें और गंधक की गंध — ये सब मिलकर उस दिवाली की असली रोशनी को ढक देते हैं जो प्रेम, शांति और सादगी का प्रतीक है।
कवि ने बहुत सादे शब्दों में कहा है कि असली दीवाली दीपों (diyas) से जगमगाती है, न कि पटाखों की आवाज़ से। यह कविता बच्चों को सिखाती है कि पर्यावरण (environment) की रक्षा करना और जानवरों (animals) तथा प्रकृति (nature) को नुकसान न पहुँचाना ही सच्ची खुशी है।

आज की पीढ़ी के लिए यह कविता एक संदेश है — आइए, हम बिना पटाखों के दीवाली मनाएं और धरती को फिर से खुशियों की रौशनी से भर दें।
यह कविता स्कूल की असेंबली, पर्यावरण दिवस, या “ग्रीन दीवाली” विषय पर बच्चों के पाठ के लिए एकदम उपयुक्त है।

कविता: यह कैसी दीवाली है!

बजे पटाखे धाँय-धाँय-धाँ,
या गोले हैं तोप के,
काँप रही घर की दीवारें,
यह कैसी दीवाली है!

ठाँय-ठाँय-ठाँ, ठाँय-ठाँय-ठुस,
जैसे दो फ़ौजें लड़ती हैं,
ऐसे युद्ध ठना है भाई,
यह कैसी दीवाली है!

आसमान सब धुआँ-धुआँ-सा,
धरती पर गंधक के भभके,
कानों के परदे फटते हैं,
यह कैसी दीवाली है!

पलभर चैन नहीं है भाई,
नहीं कहीं अब दिल की बातें,
चारों ओर मची आँधी है,
यह कैसी दीवाली है!

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