हिंदी नैतिक कहानी: मेहनत का फल
रामू पढ़ाई में बहुत ही होशियार था उसके मन में बहुत उम्मीदें थीं, कि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा। पर वह हमेशा उदास रहता था परीक्षा निकट थी रामू की मां ने देखा वह हमेशा चुप उदास बैठा आसमान देखा करता है।
रामू पढ़ाई में बहुत ही होशियार था उसके मन में बहुत उम्मीदें थीं, कि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा। पर वह हमेशा उदास रहता था परीक्षा निकट थी रामू की मां ने देखा वह हमेशा चुप उदास बैठा आसमान देखा करता है।
एक राजा अत्यन्त निर्दयी और अत्याचारी था। वह जनता को हर तरह से दुःख और कष्ट दिया करता। सारी जनता राजा के व्यवहार से दुःखी रहती थी। अचानक एक दिन उस राजा के राज्य में एक साधु आया।
विजय अपने माता-पिता के साथ सुजानगढ़ में रहता था। वह अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। वह बहुत शरारती था। पढ़ने से वह हमेशा जी चुराता था। पढ़ाई की वजह से वह स्कूल से कई बार भाग भी जाता था।
किसी जंगल में एक मक्खी और हाथी की मित्रता की बड़ी चर्चा थी। लेकिन जंगल के अधिकांश पशु-पक्षी उनकी मित्रता की बातों को सुनकर हंसते थे। कारण यह था कि मक्खी जब भी हाथी से मिलती थी।
एक बार एक सज्जन पुरूष दिल्ली से अम्बाला जा रहे थे। दिसम्बर का महीना था और जनाब थे भी मोटर साईकिल पर सवार। अगर एक मुसीबत हो तो भुगत ली जाये लेकिन यहाँ मुसीबतें थी।
किसी गाँव में एक फूलकुमारी नाम की महिला रहती थी। दूसरों के घर की सफाई तथा बर्तन मांजकर थोड़े बहुत पैसे उसे मिलते थे। उन्हीं पैसों से गुजारा करती थी। उस फूलकुमारी का इकलौता बेटा था रामू।
किसी जमाने में एक राजा था, उनका नाम धर्मसेन था। धर्मसेन का जैसा नाम था, वैसा ही उनका काम भी था। वह धार्मिक होने के साथ-साथ न्यायप्रिय भी थे। उनके दरबार में लोग दूर दूर से न्याय के लिए आते थे।