हिंदी प्रेरक कहानी: संतोष धन
हमारी इच्छाएं असीमित हैं किन्तु हमारे साधन सीमित हैं। हमारे पास कितना भी धन हो जाये, हमारी कुछ इच्छाएं सदैव पूरी होने से वचिंत रहेंगी। जब तक हम अपने वर्तमान से संतुष्ट होना नहीं सीखते हम दुखी रहेंगे।
हमारी इच्छाएं असीमित हैं किन्तु हमारे साधन सीमित हैं। हमारे पास कितना भी धन हो जाये, हमारी कुछ इच्छाएं सदैव पूरी होने से वचिंत रहेंगी। जब तक हम अपने वर्तमान से संतुष्ट होना नहीं सीखते हम दुखी रहेंगे।
एक घने वन में एक हरीश नामक हिरण और कालू कौआ दोनों रहते थे, दोनों में गहरी दोस्ती थी कालू कौआ सुबह उठकर ऊंचा उड़ता और हरी भरी घास का पता लगाता।
उन दिनों रामकृष्ण परमहंस बेहद बिमार थे, चारपाई से उठने की शक्ति भी उनमें नही बची थी उनके निकट संबंधी और भक्तगण उनकी इस दशा पर बेहद चिंतित थे।
दक्षिण भारत के राजा थे, उनका नाम था चेर। कम्बन उनके राजकवि थे। कम्बन ने ही तमिल में रामायण लिखी थी। राजा चेर के दरबार में बहुत से कवि थे। लेकिन राजा कम्बन को सबसे ज्यादा मानते थे।
करीब तीन सौ वर्ष पहले की बात है। गढ़वाल के पूर्वी क्षेत्र खैरागढ़ में राजा भानशाही का शासन था। राजा सदैव प्रजा के हित का ध्यान रखता था, अत: उसकी प्रजा बहुत सुखी और प्रसन्न थी।
किसी इलाके में एक जमींदार रहता था। उसके पास अपार धन-सम्पत्ति थी। जमीदार के दो पत्नियां थीं, माधवी और सुनंदा। माधवी से जमींदार के पांच पुत्र हुए- अमल, श्वेत, पलक, धीर और त्यागी।