हिंदी प्रेरक कहानी: असली पूजा
धनिया एक गरीब बच्चा था। न उसके पास रहने को घर था और न पहनने को वस्त्र। दिन भर वह कालोनी के लोगों के छोटे-मोटे काम करता था और जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था उसी से पेट भर लेता था।
धनिया एक गरीब बच्चा था। न उसके पास रहने को घर था और न पहनने को वस्त्र। दिन भर वह कालोनी के लोगों के छोटे-मोटे काम करता था और जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था उसी से पेट भर लेता था।
कितनी बार कहा है कि केले खाकर छिलके सड़क पर न फेंका कर पर तू है कि एक कान से सुनी और दूसरी कान से निकाल दी। मां ने नीटू को डांटते हुए कहा। अव्वल दर्जे का शरारती नीटू केले खाकर छिलके खिड़की से सड़क पर फेंक रहा था।
सुबह का समय था। चारों ओर चटक धूप फैली हुई थी। क्यों न हाथी के ढाबे पर चाय पी जाए। चीकू खरगोश ने सोचा और ढाबे की तरफ चल पड़ा। "नमस्ते एनी भाई" वह मुस्कुराते हुए हाथी से बोला।
काफी समय की बात है। तीन दोस्त- रमन, श्याम और सूरज गांव से शहर की ओर नौकरी की तलाश में जा रहे थे। इनमें रमन और श्याम तो तेज थे लेकिन सूरज बहुत सीधा था दोनों मित्र हर काम सूरज से ही करवाते थे।
बरसों पुरानी बात है, हरिपुर का राजा था भद्रसेन वह अपनी न्यायप्रियता और दयालु स्वभाव के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। एक दिन एक देवता, राजा भद्रसेन पर उसकी दयालुता और न्यायप्रियता के कारण प्रसन्न हो गए।
प्रीतमपुर में एक जाट रहता था। साधारण नहीं बल्कि जिसके बारे में कहा जाता था, "दूसरों को मूर्ख बनाओ, और मौज उड़ाओ"। उस जाट को सब गंगू कह कर पुकारते थे। एक बार गंगू को एक बैल की आवश्यकता पड़ गई।
बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुंचा, और बोला "यशपताका आकाश में सदैव फहराती रहे। बस दस रूपये का सवाल है, महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता"। "मैं कला का परखी हूं।