बच्चों की प्रेरक हिंदी कहानी: विचित्र परंपरा
बहुत समय पहले की बात है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित घाटी में एक कबीला था। कबीले के व्यक्तियों का जीवन जंगल की लकड़ियों पर निर्भर था। वे लकड़ी की खूबसूरत मूर्ति बनाकर बाजार में बेच-आते थे।
बहुत समय पहले की बात है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित घाटी में एक कबीला था। कबीले के व्यक्तियों का जीवन जंगल की लकड़ियों पर निर्भर था। वे लकड़ी की खूबसूरत मूर्ति बनाकर बाजार में बेच-आते थे।
श्रीपुर नामक कस्बे में भोला नाम का एक युवक रहता था। बचपन से ही वह कामचोर एवं काहिल स्वभाव का था। घर परिवार के दैनिक कार्यों से उसका कोई वास्ता न होता था।
किसी नगर में एक सेठ रहता था जिसने अपनी मेहनत से खूब धन कमाया और शहर में ही अपने नाम की पांच दुकानें खोलीं, सेठ को इस बात का बहुत घमंड था वह रोज अपने सेठानी से आकर कहता था।
बहुत समय पहले भालू की लंबी एवं चमकदार पूंछ हुआ करती थी। भालू को इस पर बड़ा घमंड था। वह सभी से पूछता था कि आज मेरी पूंछ कैसी लग रही है? अब कोई भालू से पंगा लेता क्या भला?
एक बेहद समझदार व्यक्ति था, जिसे घूमने का बहुत शौक था। एक दिन वह घूमते घूमते एक ऐसे राज्य में चला गया जहां पर राजा को ढूंढने की तैयारी चल रही थी और इसका जिम्मा एक हाथी को सौंपा गया था।
एक साधु थे, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करते थे, “जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे”। बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।
एक किसान था, वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था। उस खेत के बीचों-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था।