बच्चों की नैतिक कहानी: बात बहुत छोटी सी
राम रतन में सोच समझ कर काम करने की बुद्धि का अभाव था। वह उतावलेपन कुछ में कुछ भी कर बैठता था। तथा फिर पछताता था। उसके मित्रों ने व उसके माता-पिता ने उसे कई बार समझाया पर उसके समझ में न आया।
राम रतन में सोच समझ कर काम करने की बुद्धि का अभाव था। वह उतावलेपन कुछ में कुछ भी कर बैठता था। तथा फिर पछताता था। उसके मित्रों ने व उसके माता-पिता ने उसे कई बार समझाया पर उसके समझ में न आया।
एक था राजा, जिसे देश-विदेश के किस्म-किस्म के रंग-बिरंगे पक्षी पालने का बड़ा शौक था। अपने इस शौक के खातिर वह खूब दौलत खर्च किया करता। प्रजा के कई लोग रात-दिन जंगलों मे जाते और जाल बिछाकर कई पक्षियों को कैद कर लेते।
केवल चेहरा देखकर चरित्र बताने का दावा करने वाला एक ज्योतिषी जब यूनान के जाने माने दार्शनिक सुकरात के सामने पहुंचा तो वह अपने शिष्यों की मंडली जमाकर बैठे थे।
एक महर्षि थे। उनकी काफी ख्याति थी। कृष्णा नदी के किनारे उनका आश्रम था, जहां कई शिष्य रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक दिन महर्षि ने अपने एक शिष्य से कहा, निकट के गांव में जाकर जरूरत की सारी चीजें खरीद लाओ।
धनिया एक गरीब बच्चा था। न उसके पास रहने को घर था और न पहनने को वस्त्र। दिन भर वह कालोनी के लोगों के छोटे-मोटे काम करता था और जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था उसी से पेट भर लेता था।
कितनी बार कहा है कि केले खाकर छिलके सड़क पर न फेंका कर पर तू है कि एक कान से सुनी और दूसरी कान से निकाल दी। मां ने नीटू को डांटते हुए कहा। अव्वल दर्जे का शरारती नीटू केले खाकर छिलके खिड़की से सड़क पर फेंक रहा था।
सुबह का समय था। चारों ओर चटक धूप फैली हुई थी। क्यों न हाथी के ढाबे पर चाय पी जाए। चीकू खरगोश ने सोचा और ढाबे की तरफ चल पड़ा। "नमस्ते एनी भाई" वह मुस्कुराते हुए हाथी से बोला।