भारत के प्रधानमंत्री, माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी जब भी अपने देशवासियों से अपने मन की बात कहतें है तो उसमें देश के हर नागरिक के हित में कुछ न कुछ होता ही है। उनके मन की बातों में जितना कुछ बड़ों के लिए होता है, उतना ही बच्चों के लिए भी संदेश होता है।
दुनिया भर के बच्चे, बुजुर्ग और युवाओं की पहली पसंद, लोटपोट के प्यारे कार्टून कैरेक्टर मोटू के समोसा क्रेज के बारे में सबको पता है और मजे की बात यह है कि अब मोटू की देखा देखी दुनिया में बहुत लोगों के दिमाग की बत्ती तब तक नहीं जलती जब तक वे समोसा ना खा ले। चलिए आज उसी समोसा के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी लेते हैं। भारतीय स्नैक्स में समोसे की बड़ी डिमांड है, इसलिए सबको लगता है कि समोसा भारतीय डिश है, लेकिन असल में समोसे का इतिहास सेंट्रल एशिया से जुड़ा हुआ है जो दसवीं शताब्दी में हज़ारों मील की यात्रा करके भारत तक पंहुचा था।
इतिहासकारों का कहना है कि फारसी इतिहास में समोसे का जिक्र है। फारसी भाषा में समोसे को संबोसाग कहा जाता है। वैसे देश दुनिया में मोटू के पसंदीदा समोसे के अलग अलग नाम भी है जैसे सौमसा, समूजा, सिंगड़ा, सिंहगाडा, समसा बोरेगी वगैरह। इतिहास में बताया गया है कि दसवीं सदी में, महमूद गज़नवी के शाही दरबार में जो नमकीन, सूखे मेवे और कीमा से भरी पेस्ट्री परोसी जाती थी, वही आगे चलकर आलू, मटर, छोले वाले समोसे के रूप में भारतीय स्वाद में घुल मिल गया और इक्कीसवीं शताब्दी तक आते आते अपना रूप, आकार और स्वाद बदलते हुए वो लोटपोट के मोटू वाला समोसा बन गया और रेहड़ी, फुटपाथ के दुकानों से लेकर बड़े बड़े होटल्स में परोसा जाने लगा।
कहते हैं कि समोसा अरबी लोगों का सबसे फेवरेट स्नैक्स रहा है जिसे प्याज, गोश्त या पनीर भरकर बनाया जाता था। कहा यह भी जाता है कि पाकिस्तान के समोसे भी बहुत टेस्टी होते है। दिलचस्प बात यह है कि हर सौ किलोमीटर पर समोसे के अंदर का मसाला और ऊपर की परत बदल जाती है जिससे टेस्ट भी अलग अलग हो जाता है। कहीं समोसे की ऊपरी परत पतली होती है तो कहीं मोटी होती है। कराची के समोसे की ऊपरी परत पतली होती है जिससे उसे काग़ज़ी समोसा कहा जाता है।
दसवीं शताब्दी में, मध्य पूर्व देशों के लोग जब कई कई दिनों तक यात्रा करते थे तो अपने साथ भोजन के रूप में इसी समोसे में गोश्त, प्याज भरकर आग में सेंक कर ले जाते थे। आज के समोसे मांसाहारी और शाकाहारी दोनों तरह से बनते है और धनिया की चटनी, टमाटर की चटनी, पुदीने हरि मिर्च की चटनी, सौस, इमली की चटनी के साथ खाया जाता है। अब तो समोसा को तलने के साथ साथ बेक करके भी बनाया जाता है। आज की तारीख में समोसे ने विदेशों में भी अपनी धाक जमा ली है।
जिस देश में सदियों तक चाय के साथ बिस्किट और ग्रेनोला खाया जाता था, वहाँ आज युवाओं द्वारा चाय के साथ जमकर गर्मागरम समोसा, चटनी खाई जा रही है। लगता है दुनिया की फेवरेट कार्टून कैरेक्टर मोटू पतलू की जोड़ी ने समोसे की लत दुनिया को लगा दी है।
★सुलेना मजुमदार अरोरा★
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने शुक्रवार को नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित कार्यक्रम में देश भर के छात्रों से परिक्षा की तैयारी पर चर्चा की और उन्हें एग्जाम तनाव तथा कई तरह की परेशानियों से उबरने के लिए ढेर सारे कारगर टिप्स दिए। इस दौरान उन्होंने छात्र छात्राओं के साथ ही शिक्षकों और अभिभावकों को भी जरूरी सलाह मशविरा दिया।
26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस, भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जिसे बहुत धूमधाम से हर साल हमारे देश में मनाया जाता है। स्कूल हो या शिक्षा संस्थान, हाउसिंग सोसाइटी हो या सरकारी /प्राइवेट दफ्तर, हर जगह एक उत्सव का आयोजन होता है और पूरे आन बान और शान से तिरंगा फहराया जाता है तथा इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन तक राजपथ पर भारतीय सेना, वायुसेना, नौसेना के विभिन्न रेजिडेंट हिस्सा लेते हुए भव्य परेड करते हैं। कई प्रकार के प्रोग्राम्स का प्रदर्शन होता है। वर्ष 1950 को, इसी दिन भारत सरकार अधिनियम ऐक्ट 1935 को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।
क्या आप जानते हैं कि आजादी से पहले 26 जनवरी को ही स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता था? लेकिन फिर छब्बीस जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में क्यों मनाया जाने लगा? दरअसल पंद्रह अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली थी और संविधान 26 नवंबर 1949 में पूरी तरह तैयार हो चुका था लेकिन इसे लागू किया गया दो महीने के बाद, यानी 26 जनवरी 1950 को। संविधान लागू करने के लिए 26 जनवरी के दिन को ही इसलिए चुना गया था क्योंकि वर्ष 1930 में 26 जनवरी के दिन, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के संचालन में इंडियन नेशनल कौंग्रेस ने अँग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध ‘पूर्ण स्वराज्य की घोषणा की थी। इसलिए छब्बीस जनवरी को भारत गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इतिहास के पन्ने पलटने से हमें मालूम पड़ता है कि 31 दिसंबर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र में, पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में एक बैठक रखा गया था। इसी बैठक में शामिल सदस्यों ने 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने और देश का झंडा फहराने की शपथ ली ताकि ब्रिटिश राज से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें।
इस तरह अंग्रेज़ों की गुलामी से भले ही भारत 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हो गया था लेकिन जब दो साल, ग्यारह महिने और सत्रह/अट्ठारह दिनों में भारत का संविधान तैयार हुआ तब जाकर सही मायने में 26 जनवरी 1950 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने उस दिन देश भर में गणतंत्र दिवस मनाने की घोषणा की और पहली बार सेना की सलामी ली थी। यह भी जानना जरूरी है कि बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने बाइस समितियों के साथ, लगभग दो साल ग्यारह महीने और अठारह दिनों में दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान तैयार किया था।
★सुलेना मजुमदार अरोरा★
समुन्द्र के अंदर ही दुश्मनों का काम तमाम करने के लिए भारतीय नौसेना के बेड़े में है शक्तिशाली अटैक सबमरीन INS वागीर जिसकी इन दिनों बड़ी चर्चा है। यह पाँचवी – 75, कलवरी श्रेणी वागीर INS की पनडुब्बी, यार्ड 11879 प्रोजेक्ट 75 के तहत बनाया गया है। ये भारतीय नौसेना के लिए एक और सशक्त माध्यम है दुश्मनों को नेस्तनाबूद करने का। यह बेहद आधुनिक नेविगेशन और ट्रैकिंग प्रणालियों से लैस है। यह इतनी शक्तीशाली और खतरनाक अटैक- सबमरीन है जो पानी के अंदर ही दुश्मनों का सफ़ाया करने में सक्षम है।
यह अनोखी पहल भारत के सिवाय और कौन कर सकता है? दुनिया की सबसे लंबी यात्रा के लिए रवाना हो चुका रिवर क्रूज़, एमवी गंगा विलास, 51 दिनों में लगभग 3200 किमी की दूरी तय करके डिब्रूगढ़ पहुंचेगा। इस दौरान यह क्रूज़ बांग्लादेश से होकर भी गुजरेगा। दिनाँक 13 जनवरी 2023 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग द्वारा विश्व की सबसे लंबी यात्रा पर निकलने वाले भारतीय रिवर क्रूज़, एमवी गंगा विलास को वर्चुअली हरी झंडी दिखा कर रवाना की थी । उस दौरान सी एम योगी काशी में उपस्थित थे।
बत्तीस यात्रियों के साथ, काशी से बोगीबील तक के सुहाने सफर पर रवाना हो चुके यह क्रूज़ पंद्रह दिनों तक बांग्लादेश से गुजरेगा जिसके पश्चात गंगा विलास असम की ब्रह्मपुत्र नदी से डिब्रूगढ़ तक जाएगा। इसके तहत यह क्रूज़ सत्ताइस रिवर सिस्टम से होते हुए गुजरेगा। भारत बंग्लादेश प्रोटोकॉल के कारण यह क्रूज़ बांग्लादेश को क्रॉस करेगी। यह जल महल, पचास से अधिक महत्वपूर्ण स्थानों पर रुकेगी जिससे यात्रियों को कई विश्व धरोहर स्थलों, नदी घाटों, राष्ट्रीय उद्यानों, एतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक जगहों के दर्शन करने का मौका मिलेगा । इस विशेष और दुनिया में सबसे अनोखे जल महल की खूबसूरती देखते ही बनती है। यह 62 मीटर लंबा और बारह मीटर चौड़ा है जिसमें तीन डेक है।
फाईव स्टार सुविधाओं और अत्याधुनिक तकनीक और उपकरणों से लैस यह जलयान, हर दृष्टि से वैश्वीक स्तर के सारे मापदंड पर खरा उतरता है। इस जलयान के सफर के दौरान गंगा का पानी प्रदुषित ना हो इसका भी ख्याल रखा गया है, बल्कि यह जलयान पर्यावरण को साफ रखने में मदद करता है। इसमें आरओ तथा एसटीपी प्लांट भी लगाया गया है ताकि क्रूज़ में इस्तमाल किया गया पानी दूषित रूप से गंगा में ना बहे। यह क्रूज़ आते समय (अपस्ट्रीम) लगभग बारह किलोमिटर प्रति घंटा और जाते समय (डाउन स्ट्रीम) लगभग बीस किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से सफर तय करेगा। यह प्रदूषण और शोर रहित जलयान है। भारत के सबसे बड़े इस महा लग्ज़री क्रूज़ में 51 दिनों के लिए सफर करने का किराया लगभग बीस से पच्चीस लाख रुपये है।
इस सुखद, अकल्पनीय यात्रा के दौरान यात्रियों को वो सारी सुख सुविधाएं प्रदान की जाएगी जो फाईव स्टार होटल्स में दी जाती है। इस क्रूज़ में अट्ठारह कमरे हैं। हर कमरे में बेड, तकिये, गलीचे, सजावट की चीजें, सब देश के अलग अलग जगहों से मंगाये गए हैं जिससे देश में विविधता में एकता के दर्शन हो सके। प्रत्येक कमरे में टीवी, किताबें पढ़ने लिखने के लिए टेबल है और हर कमरे से बाहर का खूबसूरत दृश्य दिखाई देता है।
इस जलयान में एक साथ छत्तीस पर्यटक यात्रा कर सकते हैं। गंगा विलास क्रूज़ का निर्माण कोलकाता में अट्ठारह महीने में पूरा किया गया जिसमें भारतीय साज सज्जा, संस्कृति और कलाकारी स्पष्ट विदित है। क्रूज़ में किचन, जिम, रेस्तरां, सैलून, ओपन स्पेस, गीत संगीत, चिकित्सा की सुविधा सब कुछ है। इसका रूट वाराणसी, गाजीपुर से होते हुए बक्सर से पटना, मुंगेर, भागलपुर, फिर बंगाल से बांग्लादेश में एंट्री करेगा। यह क्रूज़ एक बढ़िया पर्यटन व्यवसाय स्थापित कर सकता है।
★सुलेना मजुमदार अरोरा★
पॉजिटिव थिंकिंग उसे कहते है जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कुछ अच्छा सोच लेकर आए। कभी कभी हमारे सामने ऐसी चुनौतियाँ खड़ी हो जाती है जो हमें तन और मन से परेशान कर देते हैं और ऐसा लगता है जैसे हम ऐसी स्थिति में टूट कर बिखर जाएंगे या मर जाएंगे। लेकिन अगर हम थोड़ा प्रयास करे और अपने अंदर एक पॉजीटिव सोच ले आएँ तो बड़ी से बड़ी चुनौती और संघर्ष पर आसानी से विजय प्राप्त कर सकते हैं तथा नकारात्मकता को भी सकारात्मकता में बदल सकते है।
भारत की एक और बेटी, कैप्टन शिवा चौहान अपनी मेहनत और हिम्मत के बल पर आसमान की बुलंदी छू रही है। शिवा वो प्रथम महिला सैन्य अधिकारी है जो सियाचिन की कठिन परिस्थितियों में ड्यूटी करने के लिए तैनात है। उन्होंने सियाचिन बैटल स्कूल में, ऑफिसर्स तथा इंडियन आर्मी के पुरुषों के साथ ट्रेनिंग ली।
हम सबने प्रखर बुद्धिमान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का नाम तो सुना ही होगा, भारत के इतिहास में भी कितने ही ऐसे मेधावी पुरुष तथा स्त्रियों के नाम दर्ज है जिन्होंने कम उम्र में ही अपनी बुद्धि और तेज से दुनिया को प्रभावित किया और आज भी कर रहें हैं, जैसे अभिमन्यु, चाणक्य, विधोत्तमा, वाचक्नवी गार्गी, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, और मॉडर्न ज़माने की बात करूँ तो ह्यूमन कंप्यूटर मानी जाने वाली शकुंतला देवी।
कहते है जहाँ चाह है वहां राह है। इसी चाह ने प्रफुल्ल बिल्लोरे को कामयाबी की मंजिल दिलाई। ‘एम बी ए चाय वाला’ के मालिक प्रफुल्ल बिल्लोरे ने बचपन से ही कुछ बनने का सपना देखा था और आखिर अपनी मेहनत, हिम्मत और बुद्धि से उन्होंने वो कर दिखाया