Moral Story: व्यर्थ का घमण्ड
विश्व विजयी सिकन्दर अपनी विशाल सेना के साथ ईरान देश को जीत कर बड़े अभिमान से जा रहा था। सड़क के दोनों ओर हज़ारों आदमी सिर झुकाये हुए उसकी दया दृष्टि के लिये लालायित खड़े हुए थे।
कहानियां, मात्र सुने सुनाए किस्से ही नहीं है बल्कि एक बच्चे के सर्वांगीण विकास को उसकी कल्पनाशक्ति के सहारे पंख प्रदान करने हेतु विशेष महत्व रखते हैं। Lotpot.com पे हमारे हुनरमंद लेखकों द्वारा लिखी गई कुछ ऐसी ही कहानियां आपके बच्चों में नए मनोरंजन का संचार कर उनकी सोच को विस्तृत एवं पूर्ण बनाने का कार्य करेंगी। तो जल्दी से जल्दी सब्सक्राइब कीजिए हमारी वेबसाइट lotpot.com को और अपने बच्चों के विकास के पंखों को और मज़बूत बनाइए।
विश्व विजयी सिकन्दर अपनी विशाल सेना के साथ ईरान देश को जीत कर बड़े अभिमान से जा रहा था। सड़क के दोनों ओर हज़ारों आदमी सिर झुकाये हुए उसकी दया दृष्टि के लिये लालायित खड़े हुए थे।
एक था राजा, उसके राज्य की प्रजा बहुत सुखी और समृद्ध थी। लेकिन खुद वह बेचारा बहुत दुखी रहता था। इसका कारण राजा के चेहरे व पैरों में कुछ सफेद निशान थे। उसने अनेक वैद्यों से इसका इलाज करवाया लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
बहुत दिन पहले एक रात रामगढ़ राज्य में चार चोर चोरी करने निकले। उन दिनों राज्य का राजा रात के समय भेष बदलकर जनता के दुख दर्द जानने के लिए घूमा करता था। संयोग से उन चोरों का सामना राजा से हो गया। राजा ने पूछा, ‘तुम लोग कौन हो?
मां का अंतिम संस्कार करके शोक संतप्त युवा बेटे ने अपने दुखी पिता को कहा? ‘‘पिता जी, आप भी हमारे साथ आकर क्यों नहीं रहते?’’ वृद्ध पिता पहले तो कुछ झेंप सा गया और फिर कहने लगा।
महाभारत के अद्वितीय योद्धा महाबली भीम के बल और पौरूष में तुलना करने वाला उस समय कोई नहीं था। इनका जन्म वायु देव के अंग से हुआ था। इनके जन्म के समय यह आकाशवाणी हुई थी, कि यह कुमार बलवानों से सर्वश्रेष्ठ होगा।
महेश और राजेन्द्र दोनों पड़ोसी थे। वे साथ ही स्कूल जाया करते और साथ ही वापस आते थे। महेश बहुत मोटा पर भोला था, जबकि राजेन्द्र पतला-दुबला और बेहद शैतान था। महेश पढ़ाई-लिखाई में राजेन्द्र से अधिक तेज़ था।
संत दादू दयाल अपनी सादगी और सहनशीलता के लिए सर्वत्र विख्यात थे। एक बार एक थानेदार घोड़े पर सवार होकर उनके दर्शन को चल पड़ा। संत दादू फटे-पुराने वस्त्र पहने एक पेड़ की छाया में बैठे कुछ काम कर रहे थे।