"बादल प्यारे" एक बादलों पर प्यारी कविता

यह कविता “बादल प्यारे” बच्चों की कल्पना और मासूम सवालों को बहुत सुंदर ढंग से सामने लाती है। इसमें बच्चा बादल से सीधे संवाद करता है और उसे एक दोस्त की तरह मानकर बातें करता है। बच्चा बादल से पूछता है कि बिना पंख के वह कैसे उड़ जाता है

By Lotpot
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यह कविता “बादल प्यारे” बच्चों की कल्पना और मासूम सवालों को बहुत सुंदर ढंग से सामने लाती है। इसमें बच्चा बादल से सीधे संवाद करता है और उसे एक दोस्त की तरह मानकर बातें करता है। बच्चा बादल से पूछता है कि बिना पंख के वह कैसे उड़ जाता है, क्या कोई पक्षी उससे बात करता है, और क्या वह रात अकेले ही काट लेता है। यह बातें बच्चों की जिज्ञासा और उनके कल्पनाशील मन को दर्शाती हैं।

कविता आगे बढ़ते हुए बादल की शरारती छवि भी दिखाती है। बच्चा पूछता है कि काले बादल के भीतर कितना पानी है और क्या वह भी उसकी तरह नटखट शैतानियां करता है। यह तुलना बच्चे और बादल को एक ही स्तर पर ला देती है, जिससे बच्चा बादल को एक साथी और मित्र जैसा अनुभव करता है।

कविता का सबसे प्यारा हिस्सा है जब बच्चा बादल को अपना दोस्त मानकर उससे राज़ खोलने की गुज़ारिश करता है। इससे बच्चों को यह शिक्षा मिलती है कि प्रकृति भी हमारी सच्ची दोस्त हो सकती है और हम उसके साथ बातें कर सकते हैं।

यह कविता न केवल बच्चों के कल्पनाशील मन को प्रोत्साहित करती है, बल्कि उन्हें प्रकृति से प्रेम और जुड़ाव का पाठ भी सिखाती है। इसमें छिपा संदेश यह है कि जिज्ञासु और कल्पनाशील रहना बचपन की सबसे बड़ी खूबसूरती है।

कविता: बादल प्यारे

बादल प्यारे आसमान के
क्या तुम भी सुस्ताते हो?

पंख नहीं हैं लेकिन फिर भी
कैसे तुम उड़ जाते हो?

कोई परिंदा आकर तुमसे
करता भी है बात?

या फिर यूँ अकेले ही
कट जाती है रात?

काले बादल कहो जरा
है भीतर कितना पानी?

तुम भी नटखट मेरे जैसे
करते हो शैतानी।

सच तुम्हें भी पड़ता
अपनी अम्मा से बोलो?

हम तो हैं अब दोस्त बने
मुझसे तो राज ये खोलो॥

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