बाल कहानी: गेम्स और असलियत
धीरज का पूरा समय उसके गैजेट्स में ही बीतता था। वह चाहे घर पर हो, स्कूल में हो या दोस्तों के साथ हो, उसका ध्यान हमेशा उसके फोन, टैबलेट या लैपटॉप पर ही रहता था।
धीरज का पूरा समय उसके गैजेट्स में ही बीतता था। वह चाहे घर पर हो, स्कूल में हो या दोस्तों के साथ हो, उसका ध्यान हमेशा उसके फोन, टैबलेट या लैपटॉप पर ही रहता था।
एक वक्त की बात है, एक बहुत ही दुखी लड़की थी। उसकी मां बचपन में ही मर गई थी और उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी, जो बेवा थी और जिनके दो बेटियां भी थी। उसकी जो सौतेली मां थी वो उसे बिल्कुल प्यार नहीं करती थी।
पुराना साल बीत चुका था। नए वर्ष का प्रथम दिन था। विद्यालय में पहली घंटी अभी-अभी बज कर खामोश हुई थी। कक्षा में हर विद्यार्थी अपने-अपने सहपाठी से अपनी अनोखी बातें सुनाने को उत्सुक था।
महाराजाधिराज विक्रमध्वज वृद्ध हो चले थे। अतः वे चाहते थे कि उनके तीन युवा पुत्रों वीरध्वज, शूरध्वज तथा धीरध्वज में से कोई एक यथाशीघ्र राज्य की सत्ता संभाल ले।
सुधार की राह- अंकित बहुत ही शरारती और झगड़ालू लड़का था। पढ़ाई-लिखाई में उसका जरा भी मन नहीं लगता था। जब देखो, तब वह सबके साथ लड़ता-झगड़ता रहता।
सोहन के पिता गाँव के सबसे बड़े ज़मींदार थे। सोहन उनका इकलौता पुत्र था। घर में किसी वस्तु की कोई कमी नहीं थी। नौकरों की संख्या इतनी थी कि कुछ भी पूछने की जरूरत नहीं थी।
आश्रम के एक गुरु अपने कुछ शिष्यों को लेकर नदी किनारे पहुंचे। नदी में पानी सूखा हुआ था, जिससे चट्टानें दिखाई दे रही थीं। शिष्यों ने पहली बार इतनी बड़ी चट्टानें देखी थीं