हिंदी नैतिक कहानी: दो पुत्रियों की माता
अरी सुन! किसान ने पत्नी को पुकारा और बाल्टी में चूना घोलने लगा। पत्नी आवाज़ सुनकर आ गयी और किसान के कामों में सहयोग करने लगी। उसकी दो बेटियां भी थीं- फूलमती और वीरमती!
अरी सुन! किसान ने पत्नी को पुकारा और बाल्टी में चूना घोलने लगा। पत्नी आवाज़ सुनकर आ गयी और किसान के कामों में सहयोग करने लगी। उसकी दो बेटियां भी थीं- फूलमती और वीरमती!
उस दिन की दोपहर झामू (घर का नौकर) के लिए काफी व्यस्त थी क्योंकि वो पूरा दिन मूर्ति के पीछे भागता रहा। मूर्ति बड़ा ही शरारती बच्चा था और वो कभी किसी का कहा नहीं मानता था।
रामू पढ़ाई में बहुत ही होशियार था उसके मन में बहुत उम्मीदें थीं, कि वह पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनेगा। पर वह हमेशा उदास रहता था परीक्षा निकट थी रामू की मां ने देखा वह हमेशा चुप उदास बैठा आसमान देखा करता है।
रीता और रंजन भाई-बहन थे। उनके पिता जी का तो व्यापार था। इसलिए वे अपने व्यापार में व्यस्त रहते थे। महीने में पंद्रह दिन तो व्यापार के सिलसिले में बंगलौर रहते थे। घर में मां का ही हुक्म चलता था।
अविनाश आज उदास मन से स्कूल से घर लौटा। क्या स्कूल में किसी से झगड़ा हो गया या फिर अध्यापक जी ने पढ़ाई के बारे में मारा? पता नहीं अविनाश आज क्यों उदास है।
एक राजा अत्यन्त निर्दयी और अत्याचारी था। वह जनता को हर तरह से दुःख और कष्ट दिया करता। सारी जनता राजा के व्यवहार से दुःखी रहती थी। अचानक एक दिन उस राजा के राज्य में एक साधु आया।
पुरानी बात है, सुन्दरनगर नाम का एक गांव था वहां के अधिकतर लोग खेती बाड़ी करते थे। स्त्री-पुरूष सभी बड़ी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। आपस में मिलजुल कर औैर बड़े प्रेम भाव से रहते थे।