बच्चों की हिंदी प्रेरक कहानी: बहुरूपिया
बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुंचा, और बोला "यशपताका आकाश में सदैव फहराती रहे। बस दस रूपये का सवाल है, महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता"। "मैं कला का परखी हूं।
बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुंचा, और बोला "यशपताका आकाश में सदैव फहराती रहे। बस दस रूपये का सवाल है, महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता"। "मैं कला का परखी हूं।
एक समय की बात है। किसी नदी में पांच छ: लड़के नहा रहे थे। नदी शांत थी। लड़के नहाने में खूब आनन्दित थे। बेसुध धमा चौकड़ी मचा रहे थे। अचानक एक लड़का चिल्लाने लगा। सब लड़के चौंक उठे, सबने उसकी ओर देखा।
बादशाह का दरबार लगा हुआ था, सभी दरबारियों के साथ बीरबल भी बैठे थे। तभी किसी ने आकर बीरबल को भोजन के लिए आमंत्रित किया, बादशाह की आज्ञा लेकर बीरबल दावत पर जा पहुंचे।
श्रीपुर नामक कस्बे में भोला नाम का एक युवक रहता था। बचपन से ही वह कामचोर एवं काहिल स्वभाव का था। घर परिवार के दैनिक कार्यों से उसका कोई वास्ता न होता था।
किसी नगर में एक सेठ रहता था जिसने अपनी मेहनत से खूब धन कमाया और शहर में ही अपने नाम की पांच दुकानें खोलीं, सेठ को इस बात का बहुत घमंड था वह रोज अपने सेठानी से आकर कहता था।
बहुत समय पहले भालू की लंबी एवं चमकदार पूंछ हुआ करती थी। भालू को इस पर बड़ा घमंड था। वह सभी से पूछता था कि आज मेरी पूंछ कैसी लग रही है? अब कोई भालू से पंगा लेता क्या भला?
एक बेहद समझदार व्यक्ति था, जिसे घूमने का बहुत शौक था। एक दिन वह घूमते घूमते एक ऐसे राज्य में चला गया जहां पर राजा को ढूंढने की तैयारी चल रही थी और इसका जिम्मा एक हाथी को सौंपा गया था।