Moral Story: अंधा पहरेदार
रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था।
रात का दूसरा पहर था। गाँव में चारों तरफ सन्नाटा था। केवल झींगुरों का स्वर सुनाई पड़ रहा था। हर रात की भांति गोविन्द लाल की दुकान के बरामदे में एक पहरेदार पहरेदारी कर रहा था। पहरेदार अंधा था।
एक लड़का था जिसका नाम सुरेश था, वह बहुत गरीब था। लेकिन गरीब होने के बावजूद वह बहुत उम्दा कलाकार था। उसने कई पेंटिंग्स बनाई जिसके लिए लोगों ने उसे बहुत सराहा। लेकिन एक समस्या थी।
एक राजा को अपने महल के लिए एक समझदार और ईमानदार नौकर की आवश्यकता थी। इस सेवा के लिये उस के पास तीन आदमी आए। उन में से एक दो टके का आदमी था दूसरा सौ रूपये का और तीसरा हजार रूपये मासिक वेतन का।
एक किसान था, इस बार वह फसल कम होने की वजह से चिंतित था। घर में राशन ग्यारह महीने चल सके उतना ही था। बाकी एक महीने के राशन का कहां से इंतजाम होगा। यह चिन्ता उसे बार बार सता रही थी।
एक सुनार था, उसकी दुकान के पास ही एक लोहार की दुकान थी एकदम सटी हुई। सुनार जब काम करता तो उसकी दुकान से बहुत धीमी आवाज़ आती, किन्तु जब लोहार काम करता तो उसकी दुकान से कानों को फोड़ देने वाली आवाज़ आती थी।
एक राजा अपने घोड़े पर सवार एक जंगल से अकेला गुज़र रहा था। जब वह डाकू भीलों की झोपड़ी के पास से निकला, तब उसने देखा कि एक भील के द्वार पर पिंजरे में बंद तोता चिल्ला रहा है... “पकड़ो!... मार डालो इसे!
एक संत भिक्षा में मिले अन्न से अपना जीवन चला रहे थे एक दिन वे गांव के बड़े सेठ के यहां भिक्षा मांगने पहुंचे सेठ ने संत को थोड़ा अनाज दिया और बोला कि गुरुजी मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ।