बिना सोचे-समझे का पछतावा – एक अनमोल सीख
गर्मियों की दोपहर थी। एक हरा-भरा गांव, जहां खुली हवा, हरे-भरे खेत और तालाब के किनारे खेलते बच्चे खुशियों से भरे रहते थे। उसी गांव में मधु नाम का एक चंचल और नटखट लड़का रहता था।
गर्मियों की दोपहर थी। एक हरा-भरा गांव, जहां खुली हवा, हरे-भरे खेत और तालाब के किनारे खेलते बच्चे खुशियों से भरे रहते थे। उसी गांव में मधु नाम का एक चंचल और नटखट लड़का रहता था।
एक छोटे से गाँव में मोहन नाम का एक लड़का रहता था। वह बहुत चतुर और मेहनती था, लेकिन एक बात उसे सबसे खास बनाती थी - उसकी ईमानदारी। गाँव में लोग उसकी ईमानदारी की मिसाल देते थे।
एक गाँव में मीनू नाम की एक प्यारी सी लड़की रहती थी। वह बहुत होशियार थी, लेकिन कभी-कभी अपनी शरारतों में कुछ गलतियां कर बैठती थी। उसके माता-पिता, सुमन और राजेश, उसे बहुत प्यार करते थे।
कीर्ति, नेहा, सोनू, प्रिया और उनकी क्लास के बाकी साथी आज बहुत खुश थे, गर्मियों की छुट्टियों के बाद अभी स्कूल को खुले कुछ ही दिन हुए थे कि उन्हें पिकनिक पर ले जाया जा रहा था।
एक महर्षि थे। उनकी काफी ख्याति थी। कृष्णा नदी के किनारे उनका आश्रम था, जहां कई शिष्य रहकर विद्याध्ययन करते थे। एक दिन महर्षि ने अपने एक शिष्य से कहा, निकट के गांव में जाकर जरूरत की सारी चीजें खरीद लाओ।
बादशाह का दरबार लगा हुआ था, सभी दरबारियों के साथ बीरबल भी बैठे थे। तभी किसी ने आकर बीरबल को भोजन के लिए आमंत्रित किया, बादशाह की आज्ञा लेकर बीरबल दावत पर जा पहुंचे।
एक साधु थे, वह रोज घाट के किनारे बैठ कर चिल्लाया करते थे, “जो चाहोगे सो पाओगे, जो चाहोगे सो पाओगे”। बहुत से लोग वहाँ से गुजरते थे पर कोई भी उसकी बात पर ध्यान नहीं देता था और सब उसे एक पागल आदमी समझते थे।