हिंदी जंगल कहानी: मुर्गाबी, कौआ और बुद्धिमान उल्लू
जंगल के किनारे ऊंचे पेड़ पर कौआ अपना घोंसला बना रहा था। बनाते बनाते कौए को यह लगा कि अभी कुछ कमी है। उसने घोंसले के बीच में कुछ सूखी घास रख दी और खाली स्थानो को भी भर दिया।
जंगल के किनारे ऊंचे पेड़ पर कौआ अपना घोंसला बना रहा था। बनाते बनाते कौए को यह लगा कि अभी कुछ कमी है। उसने घोंसले के बीच में कुछ सूखी घास रख दी और खाली स्थानो को भी भर दिया।
कीर्ति, नेहा, सोनू, प्रिया और उनकी क्लास के बाकी साथी आज बहुत खुश थे, गर्मियों की छुट्टियों के बाद अभी स्कूल को खुले कुछ ही दिन हुए थे कि उन्हें पिकनिक पर ले जाया जा रहा था।
एक बार राजा मान सिंह ने राज्य में अंधे लोगों को भीख देने का फैसला किया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई अंधा व्यक्ति भीख लेने से छूट न जाए।
बारिश थम चुकी थी। चारों ओर हरियाली छाई हुई थी। पानी से धुले पेड़ों पर एक नयी छटा दिख रही थी। मधुमक्खी एक खिले हुये फूल पर मडंरा रही थी। वह सारे उपवन में घूम-घूम कर अपने छत्ते पर ले जाने के लिये परागकण एकत्र कर रही थी।
बंटी! चलो खाना खालो! अन्दर रसोई से मां ने बंटी को आवाज लगाई। नहीं, मैं खाना नहीं खाऊंगा बंटी ने अपने कमरे से ही मुंह फुलाए उत्तर दिया। क्यों! क्यों नहीं खाओगे?
उस दिन की दोपहर झामू (घर का नौकर) के लिए काफी व्यस्त थी क्योंकि वो पूरा दिन मूर्ति के पीछे भागता रहा। मूर्ति बड़ा ही शरारती बच्चा था और वो कभी किसी का कहा नहीं मानता था।
रीता और रंजन भाई-बहन थे। उनके पिता जी का तो व्यापार था। इसलिए वे अपने व्यापार में व्यस्त रहते थे। महीने में पंद्रह दिन तो व्यापार के सिलसिले में बंगलौर रहते थे। घर में मां का ही हुक्म चलता था।