हिंदी प्रेरक कहानी: असली पूजा
धनिया एक गरीब बच्चा था। न उसके पास रहने को घर था और न पहनने को वस्त्र। दिन भर वह कालोनी के लोगों के छोटे-मोटे काम करता था और जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था उसी से पेट भर लेता था।
धनिया एक गरीब बच्चा था। न उसके पास रहने को घर था और न पहनने को वस्त्र। दिन भर वह कालोनी के लोगों के छोटे-मोटे काम करता था और जो कुछ रूखा-सूखा मिलता था उसी से पेट भर लेता था।
बरसों पुरानी बात है, हरिपुर का राजा था भद्रसेन वह अपनी न्यायप्रियता और दयालु स्वभाव के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। एक दिन एक देवता, राजा भद्रसेन पर उसकी दयालुता और न्यायप्रियता के कारण प्रसन्न हो गए।
बहुरूपिया राजा के दरबार में पहुंचा, और बोला "यशपताका आकाश में सदैव फहराती रहे। बस दस रूपये का सवाल है, महाराज से बहुरूपिया और कुछ नहीं चाहता"। "मैं कला का परखी हूं।
बहुत समय पहले की बात है। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित घाटी में एक कबीला था। कबीले के व्यक्तियों का जीवन जंगल की लकड़ियों पर निर्भर था। वे लकड़ी की खूबसूरत मूर्ति बनाकर बाजार में बेच-आते थे।
एक बेहद समझदार व्यक्ति था, जिसे घूमने का बहुत शौक था। एक दिन वह घूमते घूमते एक ऐसे राज्य में चला गया जहां पर राजा को ढूंढने की तैयारी चल रही थी और इसका जिम्मा एक हाथी को सौंपा गया था।
एक किसान था, वह एक बड़े से खेत में खेती किया करता था। उस खेत के बीचों-बीच पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था।
रविवार का दिन यानि छुट्टी का दिन और उस पर से ठंड का मौसम यानि दिसंबर का महीना। रूपेश के घर आज उसके सभी दोस्त मौजूद थे और आंगन में धूप में कुर्सी टेबल जमाए रूपेश अपने दोस्तों के साथ कैरम के खेल में पूरी तरह खोया हुआ था।