दिवाली पर कविया : यह कैसी दीवाली है?

यह कैसी दीवाली है?:- दीवाली भारत का सबसे रोशन और पवित्र त्योहार है, जिसे दीयों, मिठाइयों और खुशियों का पर्व कहा जाता है। यह त्योहार हमें बुराई पर अच्छाई की जीत और रोशनी पर अंधकार की विजय का संदेश देता है।

By Lotpot
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यह कैसी दीवाली है?:- दीवाली भारत का सबसे रोशन और पवित्र त्योहार है, जिसे दीयों, मिठाइयों और खुशियों का पर्व कहा जाता है। यह त्योहार हमें बुराई पर अच्छाई की जीत और रोशनी पर अंधकार की विजय का संदेश देता है। लेकिन आधुनिक समय में दीवाली का स्वरूप बदलता जा रहा है। पटाखों की तेज़ आवाज़, धुएँ और प्रदूषण ने इस त्योहार की असली पहचान को कहीं न कहीं ढक दिया है।

कविता “यह कैसी दीवाली है” इसी सच्चाई को सामने लाती है। इसमें दिखाया गया है कि किस तरह पटाखों की आवाज़ तोप और गोलों जैसी लगती है, जिससे घर की दीवारें काँप उठती हैं। धुआँ और गंधक से भरा आसमान, कानों को चुभती आवाज़ें और बेचैनी का माहौल हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या यही असली दीवाली है?

इस कविता का संदेश बच्चों और बड़ों दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। असली दीवाली तब होगी जब हम पटाखों के शोर और प्रदूषण को छोड़कर दीयों, रंगोलियों, मिठाइयों और अपनेपन की रोशनी से त्योहार मनाएँगे। दीवाली का असली आनंद तब ही है जब चारों ओर शांति, स्नेह और खुशियाँ हों।

तो आइए, इस बार हम संकल्प लें कि दीवाली को शोरगुल नहीं बल्कि रोशनी और मुस्कानों से सजाएँगे।

यह कैसी दीवाली है?

बजे पटाखे धाँय-धाँय-धाँ
या गोले हैं तोप के,
काँप रही घर की दीवारें,
यह कैसी दीवाली है!

ठाँय-ठाँय-ठाँ, ठाँय-ठाँय-ठुस
जैसे दो फ़ौजें लड़ती हैं,
ऐसे युद्ध ठना है भाई,
यह कैसी दीवाली है!

आसमान सब धुआँ-धुआँ-सा,
धरती पर गंधक के भभके,
कानों के परदे फटते हैं,
यह कैसी दीवाली है!

पलभर चैन नहीं है भाई,
नहीं कहीं अब दिल की बातें,
चारों ओर मची आँधी है,
यह कैसी दीवाली है!

त्योहारों की असली चमक,
दीयों और मुस्कानों में है।
यह कैसी दीवाली है!

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