Moral Story: राजकुमार और तीन पेड़
धर्मपुर के राजा मंगलदेव बड़े ही प्रतापी थे। उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। मंगलदेव हमेशा अपनी प्रजा के हित के बारे में सोचते रहते थे इसी कारण वहां की प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी। मंगलदेव का एक पुत्र था बलवन्तदेव।
धर्मपुर के राजा मंगलदेव बड़े ही प्रतापी थे। उनकी कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई थी। मंगलदेव हमेशा अपनी प्रजा के हित के बारे में सोचते रहते थे इसी कारण वहां की प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी। मंगलदेव का एक पुत्र था बलवन्तदेव।
एक राजा था, राजा का नाम था वीरभद्र। राजा वीरभद्र के चार पुत्र थे। चारों राजकुमार बहुत होनहार थे। समय बीतने के साथ-साथ राजा भी वृद्ध हो चला। एक दिन वह मंत्री को बुला कर बोला "महामंत्री, मैं तो अब बूढ़ा हो चला हूं।
एक था सियार। बेहद कामचोर और आलसी। दिन भर अपनी मांद में पड़ा रहता था। उसकी पत्नी भी उससे परेशान थी। बच्चों के लिए खाना उसे ही लाना पड़ता था। लेकिन ऐसे कितने दिनों तक चलता।
किसी जमाने में एक गरीब आदमी अपना खेत जोत रहा था। कि उसके हल की फल किसी कठोर चीज से टकरायी। उस व्यक्ति ने बैलों को रोक दिया और यह देखने के लिए झुका कि वह कया चीज है। चीज देख कर वह अचम्भे में पड़ गया।
डॉ. गोयबेल्स हिटलर के प्रसार मंत्री थे। एक दफा उन्होंने एक वृद्ध यहूदी पादरी से कहा "यहूदी, सुना है कि तुम लोग अपने धर्मग्रंथ 'तालमुद' पर आधारित एक विशेष तरह के तर्क का प्रयोग करते हो।
एक थी गिलहरी, बहुत छोटी सी। मां उसे प्यार से छुटकी कहती थी। छुटकी दिनभर अपने कोटर में उछल-कूद मचाती थी। मां गिलहरी जब भी दाना-दुना लेने कोटर से बाहर जाती, उसे छुटकी की ही चिन्ता लगी रहती।
कॉलेज में आज बड़ी चहल पहल थी चारों तरफ हंगामा था, सब एक दूसरे से बढ़-चढ़ कर सज संवर कर आये थे। आते भी क्यों ना? आज के दिन का तो वह बहुत दिनों से इन्तजार कर रहे थे। क्योंकि आज उनका परीक्षा फल निकलने वाला था।