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प्यारा नीलू
हिंदी मजेदार कहानी: प्यारा नीलू:- आज श्वेता के होठों पर कई सप्ताह बाद मुस्कान फूटी थी। उसकी मुस्कान व खिले हुए चेहरे को देख उसके माता-पिता भी अत्यन्त प्रसन्न थे। पिछले, कई सप्ताह से श्वेता बिमार पड़ी थी। साथ ही उदास व खोई-खोई रहती थी। जिसका मुख्य कारण था उसका प्यारा खरगोश नीलू। (Fun Stories | Stories)
नीलू खरगोश, श्वेता को बगीचे में घायल अवस्था में मिला था। जिसे देखते ही श्वेता का दिल करूणा व दया से भर आया। उसने फौरन अपनी गोद में उसे उठाया और अपने कमरे की ओर दौड़ पड़ी।
कमरे में प्रवेश कर, उसने सर्वप्रथम खरगोश के पैरों से बहते खून को साफ किया व मरहम-पट्टी करके, बिस्तर पर सावधानी से रख दिया और दौड़ते हुए अपनी मां के पास जाकर खड़ी हो गई।
कुछ क्षण बाद बोली- "मां...मां. मैं आपसे एक बात पूछूं"।
"कौन-सी ऐसी बात है बेटी जिसे पूछने के लिए तुम मुझसे आज्ञा मांग रही हो"। मां रसोई घर में काम करते हुए बोली।
"पहले, आप आज्ञा तो दीजिए"। श्वेता बोली। (Fun Stories | Stories)
"अच्छा, ठीक है पूछो क्या पूछना चाहती हो"। मां ने प्यार से कहा।
"माँ, क्या पशु-पक्षियों पर दया करना, उनसे प्यार करना, उन्हें अपनाना, यहां तक कि उन्हें अपने साथ रखना अथवा पालना क्या बुरी बात है?" संदेहात्मक भाव से श्वेता ने यह सवाल मां से पूछा।
"नहीं बेटी! यह तो बहुत अच्छी बात है। पशु-पक्षी तो अपने दोस्तों से भी ज्यादा भरोसेमंद और प्यारे होते हैं। उनका प्यार तो अपने स्वामी के लिए अनूठा होता है"।
थोड़ी देर बाद पुनः बोली- "लेकिन, यह सब बातें, तुम क्यों पूछ रही हो बेटी?"
"नहीं, मां बस यूं ही पूछ बैठी थी"। श्वेता बुझे दिल से बोली।
"नही-नहीं कुछ तो जरूर है। जो तुम मुझसे छिपा रही हो। बोलो बेटी क्या बात है?" श्वेता की मां जोर देते हुए बोली। (Fun Stories | Stories)
मां मैं जब बगीचे में, पौधों में पानी सींच रही थी तो एक प्यारा-सा खरगोश घायल अवस्था में पड़ा था। मैं, उसे लाकर...
मां मैं जब बगीचे में, पौधों में पानी सींच रही थी तो एक प्यारा-सा खरगोश घायल अवस्था में पड़ा था। मैं, उसे लाकर उसकी मरहम-पट्टी करके अपने कमरे में बिठा आई हूं। मां वह बहुत प्यारा खरगोश है, क्या हम लोग उसे अपने साथ रख सकते हैं"। सारी बातों से मां को अवगत कराते हुए श्वेता बोली।
"नहीं बेटी तुमने उसकी मरहम-पट्टी कर दिया है अब उसे वहीं छोड़ दो, जहां से तुम लाई थी। तुम उसे कैद में न रखो तो बेहतर होगा"।
"नहीं, माँ मैं उसे अपने साथ रखूंगी, अभी तो आपने ही कहा था कि पशु-पक्षियों को पालना बुरी बात नहीं है। किन्तु आप ही इसका विरोध कर रही हैं। क्यों मां? मुझे उसे अपने पास रखने की अनुमति क्यों नही देती हो?"
"ठीक है, जब तुम्हारी यही जिद है तो मैं क्या कर सकती हूं"। लम्बी सांसे लेते हुए श्वेता की माँ बोली। (Fun Stories | Stories)
अनुमती पाकर, श्वेता बहुत ही खुश हुई। वह दौड़ती हुई पुनः उसी खरगोश के पास गई और सोचने लगी कि इसका नाम क्या रखूं। रिंकू, टिंकू या मिंकू या नीलू। हां यह नाम ठीक रहेगा। मैं इसका नाम नीलू ही रखूंगी।
अब तो श्वेता पढ़ाई-लिखाई के पश्चात् नीलू के साथ खेलती, उसकी देखभाल करती, उसे बगीचे में घुमाती नीलू को भी बहुत आनन्द मिलता। धीरे-धीरे नीलू के जख्म भी भर गए। श्वेता जब स्कूल से लौटकर घर में प्रवेश करती तो नीलू दौड़ते हुए श्वेता के पास आकर फुदकने लगता मानों उसका स्वागत कर रहा हो। श्वेता उसे गोद में उठाकर सहलाती तो वह उसके हाथों को चाटता।
तब श्वेता उसे मेज पर बैठाते हुए कहती- "अभी तुम चुपचाप, यहीं बैठो बहुत शरारती हो गए हो मैं अभी तैयार होकर आ रही हूं। फिर हम दोनों साथ बैठकर खाना खाएंगे"। इतना सुन नीलू आज्ञाकारी बालक की भांति शांति पूर्वक उसके आने का इन्तजार करने लगता। फिर श्वेता आती और दोनों साथ बैठकर खाना खाते।
एक दिन शाम के समय खाते वक्त नीलू अचानक ही, मेज पर से गिर पड़ा। जिससे उसे काफी चोट आ गई। उसके मुंह से रक्त की धारा प्रवाहित होने लगी। वह बुरी तरह छटपटाने लगा। यह देख, श्वेता एकदम से घबरा गई। कांपते हाथों से नीलू को गोद में उठाकर रक्त बहते स्थान को हाथों से दबा दिया। उस वक्त तो उसका दिमाग भी काम नहीं कर रहा था। (Fun Stories | Stories)
दौड़ती हुई अपनी माँ के पास गई। माँ रसोई के कार्यों में व्यस्त थी। इस कारण उन्होंने उससे कहा "ले जाकर इसकी मरहम-पट्टी कर दो। मुझे अभी बहुत काम है"।
इतना सुन श्वेता झटके से अपने कमरे में गई जैसे-तैसे उसका खून साफ करके मरहम-पट्टी की और गोद में लेकर सहलाने लगी। थोड़ी देर के बाद उसकी मां श्वेता के समीप आई और नीलू को देखते हुए बोली- "नीलू, बिल्कुल ठीक हो जाएगा। तुम चिन्ता न करो और जाकर अपने कमरे में बैठकर पढ़ो"। इतना कहकर वह चली गई।
किन्तु श्वेता का मन काम में नही लग रहा था। वह सिर्फ नीलू के विषय में ही सोच रही थी। इसी सोचने के क्रम में वह सारी रात नीलू को गोद में लिए बैठी रही। सुबह, जब उसके कमरे में उसकी मां आई तो उन्होंने देखा नीलू को अब तक गोद में लिए, श्वेता बैठी है। शायद रोने और रात भर जागने के कारण उसकी आंखे लाल हो गई हैं।
मां को देखते ही, श्वेता भर्राए गले से बोली- "मां..मां. .देखो ना नीलू को कया हो गया है। यह तो न कुछ बोलता है और न ही फुदकता है"। (Fun Stories | Stories)
"लाओ, नीलू को मुझे दो। मैं इसे देखती हूं। उसे देखते ही, वह आवाक सी रह गई। क्योंकि नीलू का शरीर बिल्कुल शीतल था। अब तक उसके प्राण पखेरू उड़ चुके थे।
श्वेता को जब यह बात मालूम हुई तो वह सन्न रह गई। काटो तो खून नही कुछ क्षण बाद, वह मां से लिपट कर फफक-फफक कर रोने लगी।
उस दिन के बाद, वह हमेशा नीलू की यादों में ही खोई रहती। पढ़ने-लिखने तथा खाने-पीने में लापरवाही बरतने लगी। चिन्ता व अन्य लापरवाही के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। कुछ दिन बाद वह बीमार भी पड़ गई।
जब उसके माता-पिता ने ऐसा देखा तो वे अत्यंत चिंतित हुए दवाईयों का तो जैसे उस पर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता था।
तब उसके पिताजी ने निर्णय लिया कि अपने मित्र अनिम के यहाँ से एक खरगोश लाऊंगा और श्वेता को उपहार स्वरूप उसके जन्मदिन पर दूंगा। अगले सप्ताह ही श्वेता का जन्मदिन भी था और उन्होंने वैसा ही किया। जिसे देखते ही श्वेता की आंखे खुशी से चमक उठी।बिल्कुल नीलू जैसा था वह।
तभी पिताजी ने श्वेता से पूछा- "क्यों बेटी, यह उपहार तुम्हे पसन्द आया या नहीं।
"यह उपहार तो मुझे बेहद पसन्द है। आपने तो मेरी जिन्दगी और खुशियों को वापस दिया है। अन्यथा मैं तो, खैर इसे पाकर् मैं अति प्रसन्न हूं। वेरी-वेरी थैंक यू पापा"। खुशी से चहकते हुए श्वेता ने कहा।
श्वेता के मुँह से ऐसी बातें सुन उन्हें अत्यन्त प्रसन्नता हुई। वैसे भी आज श्वेता के होठों पर कई सप्ताह बाद मुस्कान जो फूटी थी। (Fun Stories | Stories)
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