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बहती नदिया छप-छप पानी – बचपन की शरारतों से भरी कविता
बचपन की दुनिया कितनी रंगीन होती है। न कोई चिंता, न कोई बोझ, बस हंसी-खुशी और ढेर सारी शरारतें। कविता “बहती नदिया छप-छप पानी” बच्चों के इन्हीं सुनहरे पलों को याद दिलाती है। यह कविता बच्चों की मासूमियत, उनकी छोटी-छोटी नादानियों और शरारतों का सुंदर चित्रण करती है।
कविता में नदी का बहता पानी और बच्चों की शरारतों को जोड़कर दिखाया गया है। जैसे नदियाँ लगातार बहती रहती हैं, वैसे ही बच्चों की ऊर्जा और उत्साह भी कभी खत्म नहीं होता। खेतों की पगडंडियों पर दौड़ना, आंगन में खेलना, बारिश के पानी में छप-छप करना या बादलों से पेंच लड़ाना – यह सब बचपन के खास हिस्से हैं।
इस कविता का सबसे प्यारा संदेश यह है कि बचपन केवल हंसी और खेल का नाम नहीं, बल्कि यह जीवन का वह समय है जहाँ हर गलती भी नादानी कहलाती है और हर शरारत मासूम मुस्कान लेकर आती है।
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इस कविता को पढ़कर बच्चे अपने खेल-खिलौनों, दोस्तों और नटखट आदतों को याद करेंगे और बड़े भी अपने बचपन की मीठी यादों में खो जाएंगे।
बहती नदिया छप-छप पानी
बहती नदिया छप-छप पानी,
हम बच्चे करते शैतानी।
बच्चे करते शैतानी,
इसकी-उसकी, कभी किसी की,
ला दें हम मुस्कान पुरानी।।
पगडंडी, खलिहानों में,
गीले छाप निशानों में।
कभी खेत में, कभी सड़क पर,
ढूंढो हमें मचानों में।।
हर घर में, हर आंगन में,
चलती है अपनी मनमानी।
कभी नज़र में आए पल भर,
पल में ही छिप जाएं।
आसमान के काले बादल,
से हम पेंच लड़ाएं।।
और कभी तो कर बैठें हम,
फिर कोई नादानी।
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